संजय

चिरकुंडा-(धनबाद), 20 जून : झीलिया नदी में आई बाढ़ से लगभग सैकड़ों लोग प्रभावित हुए हैं। लोगों के घरों में झील का पानी प्रवेश कर गया है। जिसके कारण झील के आसपास रहने वाले ग्रामीणों का काफी नुकसान हुआ है। हैरत की बात यह है कि बाढ़ के लगभग 50 घंटा बीत जाने के बावजूद भी कोई भी जनप्रतिनिधि बाढ़ पीड़ितों के लिए राहत सामग्री या खाद्य सामग्री लेकर अब तक उनके दरवाजे पर नहीं पहुंच पाए।जिसके कारण ग्रामीणों में कॉफी रोष व्याप्त है। झीलिया नदी के बाढ़ से कई कई घरों को क्षतिग्रस्त हुई है, लोग अपना जीवन यापन के लिए खुद से जद्दोजहद में जुट गए हैं। पर सवाल यह उठता है कि वोट के समय जनप्रतिनिधि लोगों के घर घर जाकर वोट मांगा करते हैं। परंतु क्या इस आपदा में जनप्रतिनिधियों का कोई दायित्व नहीं बनता है ? यह मानवता को झंझोड़ने वाला सवाल उन बाढ़ पीड़ितों के सामने विकराल रूप धारण किए हुए हैं। बाढ़ पीड़ित ग्रामीणों के पास ना तो खाने का ठीक और ना तो रहने का ठीक अब वह फरियाद भी लगाएं तो किनसे लगाएं। प्रशासनिक अमला बाढ़ के दौरान कई वादे किए परंतु वह सारे वादे फिसड्डी साबित हो रहे हैं। शिवलीबाड़ी पूरब पंचायत के कुछ समाजिक युवाओं ने शिवमंदिर परिसर में निजी खर्च पर भोजन की व्यवस्था की थी, जिसके कारण लगातार दो दिन बाढ़ पीड़ितों को कुछ राहत मिली थी। परंतु जनप्रतिनिधियों एवं सरकारी मुलाजिमों की उदासीनता के कारण लोगों में काफी नाराजगी देखी गई है। ग्रामीणों ने कहा कि बाढ़ का मुख्य कारण सद्भाव आउटसोर्सिंग कंपनी एवं कुमारधुबी रेलवे ओवर ब्रिज निर्माता कंपनी है दोनों ने अपने निजी स्वार्थ को लेकर के झील नदी का पानी को अवरुद्ध किया, जिसके कारण भीषण बाढ़ आई। पूर्व में भी इस तरह के मंजर ग्रामीण झेल चुके हैं। दोनो कम्पनी बाढ़ से प्रभावित लोगों की सूची तैयार कर लोगो की क्षतिपूर्ति अन्यथा ग्रामीण सड़क पर उतरने का कार्य करेगी। ग्रामीण जोरदार आंदोलन के मूड में हैं और उनकी आंदोलन जायज हैं।

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