नीतीश कुमार अपनी पीठ न थपथपायें, लगातार गंभीर होती स्थिति को स्वीकार करें.

◆ नवादा-बेगूसराय में जहरीली शराब से मौतों को छुपा रहा प्रशासन, नतीजतन मृतकों की संख्या बढ़ी

◆ जहरीली शराब पीने से मारे गए लोगों के प्रति माले ने जताया शोक. नवादा में हुआ प्रतिवाद

विजय शंकर 

पटना । भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि हमारी पार्टी लगातार कह रही है कि बिहार में राजनेता-प्रशासन-शराब माफिया गठजोड़ के तहत शराब का अवैध कारोबार लगातार फल-फूल रहा है, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने अहंकार का प्रदर्शन करते हुए इस सच्चाई को लगातार नकारने की ही कोशिश करते रहे हैं. हालत यह है कि जहरीली शराब आज बिहार में गरीब-गुरबों की मौत का पर्याय बन गई है. ड्रैकोनियन शराबबंदी कानून के जरिए शराब माफियाओं की बजाए गरीबों को ही सजा दिलाई जा रही है.

उन्होंने कहा कि हाल ही में गोपालगंज व मुजफ्फरपुर में जहरीली शराब से दर्दनाक मौतें हुई थीं, लेकिन राज्य सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. जिसका नतीजा है कि आज नवादा व बेगूसराय में भी दर्जन भर गरीब मौत के मुंह में जा चुके हैं.

नवादा में हमारी जांच टीम ने मृतक परिजनों से बातचीत के आधार पर पाया है कि 9 लोगों की मौतें जहरीली शराब पीने से ही हुई है, और तीन लोग अस्पताल में अब भी जिंदगी व मौत से जूझ रहे हैं. दूसरी ओर शराबबंदी कानून का आतंक ऐसा है कि लोग इस सच्चाई को छुपाने की कोशिश करते हैं. इस कारण सही समय पर इलाज नहीं हो पाता और लोग मौत के मुंह में बिना समय चले जा रहे हैं.

नवादा जिला प्रशासन ने अपना पल्ला झाड़ते हुए इन मौतों को हर्ट अटैक व डायरिया से हुई मौतें करार दे दिया. वे लोग मृतक परिजनों पर जहरीली शराब की चर्चा न करने का दबाव भी बना रहे हैं. लेकिन सवाल यह उठता है कि अचानक दर्जन भर लोगों को डायरिया व हर्ट अटैक कैसे हो गया?

दरअसल, मामला यह है कि जहरीली शराब पीने से सबकों पहले कय-दस्त हुआ और फिर उनकी मौत हुई है. लेकिन अब इस सच्चाई को ढंकने की कोशिश हो रही है.

गोपालंगज खजूरबनी कांड में जब से गरीबों को शराब पीने के जुर्म में फांसी की सजा हुई है, पूरे राज्य के गरीब आतंकित हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें भी फांसी की सजा हो जाएगी. यह कैसा अनर्थ है? सरकार जानते हुए भी शराब माफियाओं पर नकेल नहीं कसती और दूसरी ओर गरीबों को सजा करवा दे रही है.

हमारी पार्टी की मांग है कि नीतीश कुमार अपनी पीठ थपथपाने की बजाए शराबबंदी कानून की सच्चाई को स्वीकार करें और सबसे पहले राजनेता-प्रशासन व शराब माफिया के गठजोड़ को ध्वस्त करें. गरीबों पर आतंक बरसाने की बजाए शराब की लत छुड़ाने के लिए विशेष चिकित्सकीय व्यवस्था का प्रावधान करें. अनुमंडल स्तर पर नशा मुक्ति केंद्रों की स्थापना करें. लेकिन दुर्भाग्य से सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं दिखती और उसने गरीबों को मरने-खपने के लिए छोड़ दिया है.
नवादा में आज प्रतिरोध मार्च भी संगठित हुआ.

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