सुबोध कुमार साहा-
किशनगंज ।बिहार के सीमावर्ती जिला किशनगंज में ऐसिया का सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक खगड़ा मेला का हुआ शुभारंभ ।इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि जिलाधिकारी श्रीकांत शास्त्री ने खगड़ा का विधिवत् उद्घाटन समारोहपूर्वक किया।जिलाधिकारी ने कहा कि यह पारंपारिक मेला ब्रिटिशकाल में 1883 ई.से होता चला आ रहा है।उन्होंने कहा कि जानकारी मिलती है कि यहा के तत्कालिन नबाव के द्वारा यह मेला सृजित है।लेकिन अब जिले में प्रशासनिक व्यवस्था में संचारित होता आ रहा हैऔर यह पारम्परिक खगड़ा मेला लोगों के लिए आज भी आकर्षण का केन्द्र बना है।
जिलाधिकारी ने कहा कि मेला संवेदक बबलू साहा को दो बातों का विषेश ध्यान रखने की जरूरत है जिसमें सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हो और मेले में शांति व्यवस्था भंग न हो।इसके लिए प्रशासनिक व्यवस्था में पुरा सहयोग मेले के समयावधि तक मिलता रहेगा।
वही इसके पूर्व मचासीन महानुभाव में जिला के उप विकाश आयुक्त मनन राम ,एसडीएम अमिताभ गुप्ता,जिला परिषद अध्यक्षा नुदरत महजवीं,नगर परिषद अध्यक्ष इन्द्रदेव पासवान एवं अन्य प्रमुख का मेला संवेदक सदस्यों द्वारा पुष्पगुचछ भेंट कर स्वागत किया गया।इस अवसर पर मेले में आमंत्रित समाजसेवी ,राजद के वरिष्ठ नेता उष्माणगणी ,नगर परिषद के पूर्व नप उपाध्यक्ष सह वार्ड पार्षद भाई कलीमुद्दीन सहित अन्य सभी वार्ड पार्षद आमंत्रित थे।
उल्लेखनीय है कि किशनगंज जिला की पहचान खगड़ा मेला है। जिले को आज भी खगड़ा मेला के नाम के साथ जोड़कर लोग पहचान जाते हैं।जानकारी मिलती है कि अठारवीं सतावदी में जब भारत में ब्रिटिश हुकुमत हुआ करता था। राजा और नबावों का रियासत हुआ करता था।वही राजा और रजवाड़े में खेल, तमाशा एवं नृत्य ही मनोरंजन का साधन मात्र हुआ करता था।ऐसे समय में ही पूर्णिया जिला अंतर्गत किशनगंज के नबाव जैनुद्दीन हुसैन मिर्जा को एक मेला आयोजित करने का ख्याल आया और उसने 1883 ई.में ब्रिटिश हुकुमत के तत्कालिन जिलाधिकारी ए.विक्श से सलाह- मशवरा के बाद मेला आयोजन के लिए स्थल का चयनित किया। चयनित मेला स्थल का विशाल भू-भाग में खगड़ा नामक घास का अरण्य था और इसलिए आयोजित मेला का नाम पहले एविक्स मेला रखा गया बाद में फिर खगड़ा घास क्षेत्र में लगने वाला मेला का नाम “खगड़ा मेला” रख दिया गया था। यहा मेला के आयोजन में विभिन्न प्रकार के व्यवसायिक प्रतिष्ठान,जिसमें प्रमुख पशुओं का बड़ा बाजार ,खेल, तमाशा , कलाकारों का रंगमच , सर्कस ,जागूगरों के तमाशे , साजो- समान सहित जीवन उपयोगी सभी साम्रगी की बड़ी-छोटी दुकानें भारत के कौने -कौने से आंमत्रित हुआ करता था।खगड़ा मेला की भव्यता की चर्चा भी भारत के कौने -कौने में फैली हुई थी इतना ही नही पड़ोषी देश नेपाल ,म्यांमार और ऐसिया के अन्य कई देशों तक मेला का ख्याति फैला हुआ था । शुरूआती वर्षो के साथ यह मेला प्रत्येक वर्ष आयोजित होने लगा और यह मेला बीतते वर्षो में ऐसिया का सुप्रसिद्ध मेला बन गया था।ऐसिया भर से यहा मेला में पर्यटक आया करते थे।वही बिहार में सोनपुर मेला के बाद खगड़ा मेला को दुसरे स्थान पर माना जाता था।
लेकिन आज खगड़ा मेला ऐतिहासिक भी हैं,मेला के नाम के साथ सुप्रसिद्ध खगड़ा मेला भी जुडा़ है।मगर धरातल पर मेला का क्षेत्रफल समय के साथ सिकुड़ता चला गया है ।जिसके कई कारण है।जिसमें वर्ष 1956 में जमींदारी प्रथा समाप्त होने पर मेला का राजस्व राज्य सरकार के अधीन हो गयी ।राज्य सरकार के अधीन मेला क्षेत्र होने के उपरांत धीरे -धीरे राज्य सरकार के विभिन्न आवश्यकता अनुसार मेला के लिए चिन्हित भूमि पर विभिन्न विभागीय भवन बनता गया और मेला का क्षेत्रफल घटता चला गया।अब मेला नाम मात्र सीमित क्षेत्रफल में ही आयोजित होता है।लेकिन अब पशुओं का बड़ा बाजार नही सजता जिसमें पहले जमाने के खगड़ा मेला में पशु हाट का राजस्व लाखों की वसूली होती थी ।आज तो पशु हाट का वजूद ही खत्म हो गया है ।भारत के कौने -कौने से आने वाले विभिन्न व्यवसाकि प्रतिष्ठान भी नही दीखते है।बस सिमित क्षेत्र में विभिन्न प्रकार का झुला ,एक थियेटर व छोटी सर्कस आने वाली है , साजों समान की कुछ दुकाने ,हरेक माल एक दाम की दुकानें,खान-पान के कुछ स्थानीय एवं प्रवासी दुकानें सजे हैं।लेकिन लोगों को यह परम्परागत मेला आज भी आनंदित और आकर्षित करती है।

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