सुबोध,
किशनगंज 14 मार्च । बिहार के किशनगंज जिले में एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष सह विधायक अख्तरूल इमान द्वारा किशनगंज लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद जिले में राजनैतिक सरगर्मी बढ़ गयी है। उन्होंने बिहार के सीमांचल एवं मिथिलांचल मिलाकर कुल ग्यारह सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है।
एआईएमआईएम के इस फैसलें पर राजनैतिक जानकारों का विश्लेषण तथा मानना है कि लोकसभा चुनाव 2024 में औवेसी की पार्टी का मुस्लिम वोटरों पर पकड़ कमजोर हो गई है। पिछले 2020 विधानसभा चुनाव में औवेसी के पक्ष में जो हवा थी वह अब नहीं है।बिहार में ओवैसी की नजर मुस्लिम और दलित वोटरों पर है इसलिए बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में है। लेकिन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के पिछले 2020 विधानसभा चुनाव में छह: में से चार विधानसभा सीट पर जीत की खुमार है। उससे पहले भी उप चुनाव में किशनगंज विधानसभा सीट पर एआईएमआईएम का खाता खुल चुका है इसलिए किशनगंज लोकसभा सीट पर एआईएमआईएम पार्टी को लगता है यह सुरक्षित सीट है। लेकिन पार्टी का यह मात्र भ्रम इस टूट जाएगा। चूंकि यहां से जीते हुए अमौर विधानसभा के विधायक को छोड़कर सभी विधायकों का लालू यादव की पार्टी राजद में विलय हो जाने के बाद से किशनगंज लोकसभा क्षेत्र में एआईएमआईएम पार्टी की मुस्लिम वोटरों पर पकड़ कमजोर हो चुकी है। राजनैतिक जानकार का यह भी मानना है कि राजद में विलय तो अमौर विधानसभा के विधायक का भी हो जाता अगर किशनगंज लोकसभा सीट से राजद का टिकट मिल जाता।मगर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि लोकसभा में राजद अकेला चुनाव नहीं लड़ रहा है, वह इण्डिया गठबंधन का हिस्सा है और किशनगंज लोकसभा सीट पर कांग्रेस का सीटिंग सांसद डॉ जावेद आजाद हैं ।इसलिए इंडिया गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के लिए ही सुरक्षित माना जा रहा है। वही जब जनतादल युनाइटेड इंडिया गठबंधन का हिस्सा था तो जदयू भी यहां की सीट पर अपना दावा पेश कर चुका था मगर अब इंडिया गठबंधन में कांग्रेस के लिए किशनगंज लोकसभा सीट सुरक्षित माना जा रहा है। चूंकि जदयू एनडीए में शामिल हो गया है।यानि औवेसी की पार्टी लोकसभा 2024 में भले ही ग्यारह सीटों पर चुनाव लड़ने का घोषणा किया है। मगर इसबार लोकसभा चुनाव में औवेसी पार्टी को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में चुनाव जीतना भारी पड़ सकता है ।

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