सांसद सुशील कुमार मोदी


जननायक कर्पूरी ठाकुर की सादगी बेमिसाल व अनुकरणीय है। मुख्यमंत्री के सर्वोच्च पद पर पहुंचने के बावजूद आजीवन वे तामझाम व दिखावे से दूर रहे। उनसे जुड़े अनेक संस्मरणों में से एक ऐसा है, जिसे मैं कभी भूल नहीं पाता हूं।

बात 1978 की है। पटना विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आए प्रसिद्ध गांधीवादी अर्थशास्त्री डा. जे. डी. सेठी मेरे राजेन्द्र नगर स्थित घर पर ठहरे हुए थे। एक दिन बाद विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में उन्हें शामिल होना था। मैंने उनसे पूछा कि वे पटना में किससे मिलना चाहेंगे। डा. सेठी ने कहा कि अगर संभव हो तो वे कर्पूरी जी से मिलना चाहेंगे। मैंने कर्पूरी जी के आफिस में फोन कर डा. सेठी के पटना में होने और उनसे मिलने की इच्छा के बारे में नोट करा दिया। मैंने आग्रह किया था कि जब भी कर्पूरी जी समय देंगे, मैं डा. सेठी को लेकर बताई गई जगह पर आ जाऊंगा।

मैं सी.एम. आफिस से कोई सूचना आने का इंतजार ही कर रहा था कि 4-5 घंटे बाद मेरे घर का काल बेल बजा। मेरी भाभी दरवाजा खोली, सामने कर्पूरी जी खड़े थे। मगर वह कर्पूरी जी को पहचानती नहीं थी। उन्होंने पूछा, आप कौन है? किससे मिलना है? कर्पूरी जी ने कहा, ‘क्या सुशील मोदी जी का घर यही है, मैं कर्पूरी ठाकुर हूं।’ कर्पूरी ठाकुर का नाम सुनते ही भाभी भौंचक रह गई।

जब कर्पूरी जी मेरे घर पर पहुंचे थे, तब उनके साथ सुरक्षाकर्मी, स्काट, पायलट कुछ भी नहीं था। राजेन्द्र नगर स्थित मेरे घर पर पहुंचने से पहले अम्बेसडर गाड़ी में आगे बैठे कर्पूरी जी ने रास्ते में दो-तीन जगहों पर रूक कर लोगों से रास्ता पूछा था।

यह दीगर है कि जे. डी. सेठी का 74 के जेपी आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान था। कर्पूरी जी से उनका पुराना सम्पर्क-संबंध भी था। मगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री किसी से मिलने के लिए स्वयं किसी दूसरे के घर पर बिना किसी पूर्व सूचना, तामझाम के पहुंच जाए यह विस्मित करने वाली बात थी।

दरअसल, कर्पूरी ठाकुर जी के राजनीतिक-सामाजिक जीवन में आडम्बर और दिखावे के लिए कोई जगह नहीं थी। वे सादगी और शिष्टाचार के प्रतिमूर्ति थे।

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