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संजय श्रीवास्तव

आरा। श्रीसनातन शक्तिपीठ संस्थानम् तथा सनातन-सुरसरि सेवा न्यास द्वारा श्रावण समाराधना के क्रम में सहदेव गिरि मंदिर कतीरा में आयोजित साप्ताहिक शिव पुराण की कथा के दूसरे दिन प्रवचन करते हुए आचार्य डॉ भारतभूषण जी महाराज ने कहा कि पूरी पृथ्वी के सभी तीर्थों का फल माता-पिता की सेवा तथा सुव्यवस्थित रूप से देखभाल करने से ही प्राप्त हो जाता है।रुद्र संहिता के कुमार खंड की कथा कहते हुए आचार्य ने कहा कि स्वामी कार्तिकेय और गणेश जी के विवाह के लिए भगवान शिव-पार्वती ने नियम बनाया कि जो पूरी पृथ्वी की परिक्रमा कर जल्दी वापस आ जाएगा उसका विवाह पहले होगा। स्वामी कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गये और गणेश जी ने स्नान कर दो दिव्य आसनों पर भगवान शिव-पार्वती को विराजमान कराया।उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की तथा सात बार परिक्रमा की। इसके फलस्वरूप गणेश जी का विवाह विश्वकर्मा की पुत्रियों सिद्धि और बुद्धि के साथ हो गया और उनसे उनके दो दिव्य पुत्र क्षेम और लाभ उत्पन्न हुए। बहुत दिनों के बाद पृथ्वी की परिक्रमा कर कार्तिकेय स्वामी वापस आए और गणेश जी के विवाह की बात जान कर क्रौंच पर्वत पर चले गए जहां वे आजीवन कुमार अर्थात ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं। पुत्र स्नेह में पार्वती और शंकर भी एक रूप में उसी पर्वत पर मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग बन कर रहने लगे। प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमा को कुमार स्वामी कार्तिकेय के विशेष दर्शन-पूजन का विधान है जिससे संपूर्ण पापों का नाश हो जाता है तथा सभी मनोवांछित वस्तुएं प्राप्त हो जाती हैं। मौके पर मंदिर के पुजारी अजय मिश्रा सहित काफी संख्या में भक्त मौजूद थे।

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