बिहार की लोककलाओं पर परिचर्चा का आयोजन

पटना, 26 फरवरी । कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के सौजन्य से स्वस्ति सेवा समिति द्वारा सुजनी कला पर पाँच दिवसीय *सीबे सजयबै साथे-साथ* प्रदर्शनी सह परिचर्चा कार्यक्रम का आयोजन बिहार ललित कला अकादमी में किया गया है। कार्यक्रम के दूसरे दिन सूफ़ी गायन के साथ-साथ *परंपरा, सांस्कृतिक स्मृति और पहचान* विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा की अध्यक्षता बिहार हेरिटेज डेपलमेंट सोसायटी के निदेशक डॉ. विजय कुमार चौधरी ने करते हुए कहा कि बुद्धिस्ट कलाओं में बिहार का अद्वितीय स्थान रहा है। यह समय कला संस्कृतियों के सिंथेसिस का है।
बिहार कला सम्मान से सम्मानित कला समीक्षक विनय कुमार ने सुजनी कला सहित मधुबनी पेंटिंग के महिला कलाकारों के योगदानों की चर्चा करते हुए कहा कि वर्तमान समय में कलाओं को समकालीन संदर्भ में प्रस्तुत करने की ज़रूरत है। इस प्रक्रिया में सांस्कृतिक मेमोरी की बड़ी भूमिका है।
एससीईआरटी के कला एवं शिल्प विभाग के व्याख्याता डॉ. जैनेन्द्र दोस्त ने प्रदर्शनकारी कला विशेष कर बिहार की लोक रंगमंचीय परंपरा और स्त्रियों की पहचान विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि कलाओं में जेंडर के आधार पर खुब भेदभाव होते रहा है। नाचती गाती नाटक करती महिलाओं को समाज हेय दृष्टि से देखता है। यही वजह है कि ग्रामीण समाज हो या शहरी समाज आज भी महिलाओं को रंगमंचीय विधा में एक अच्छी पहचान नही मिली है।

परिचर्चा की वक़्ता अनन्या खौंड ने असम में प्रचलित लोककथाओं पर अपनी बात रखते हुए कहा कि पारंपरिक रूप से लोककथाओं का क्रॉस कल्चर संबंध रहता है।

परिचर्चा का संयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. विनीता सिन्हा ने किया। विनीता सिन्हा ने मधुबनी पेंटिंग के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित कलाकार दुलारी देवी के कार्यों पर विस्तार से बात रखते हुए कहा कि दुलारी देवी के कार्यों में परंपरा के साथ के समकालीन हस्तक्षेप भी है। उनके कार्यों में उनके सामाजिक सांस्कृतिक एवं जातीय पहचान संदर्भित होती है।

परिचर्चा में स्वस्ति सेवा समिति के अध्यक्ष, सहित पटना विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, पटना के अनेक रंगकर्मी, कलाकार एवं कला मर्मज्ञ उपस्थित थे।

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