केंद्र सरकार के टालमटोल भरे रवैया के बाद पिछड़े समाज के लोगों में जबरदस्त गुस्सा
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कह दिया, जातीय जनगणना संभव नहीं, इसमें बेहद कठिनाई 

bihar bureau 

पटना। केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जातीय जनगणना कराने से इंकार कर देने की घटना से बिहार में विपक्षी दलों में उबाल सा आ गया है । कई नेताओं और आम लोगों ने केंद्र सरकार के इस रवैए की तीखी आलोचना की है । पिछड़े समाज के लोगों से लेकर दलित और आदिवासी समाज के नेताओं में भी काफी नाराजगी देखी जा रही है। खुद भाजपा के अंदर पार्टी में शामिल पिछड़े, दलित, आदिवासी समाज के जनप्रतिनिधियों ,सांसदों विधायकों में भी नाराजगी है। लेकिन वे मोदी ,शाह और कारपोरेट घरानों , थैली साहों के सामने मुंह बंद रखने को विवश हो गए हैं।

इन सबके बीच राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद खुलकर सामने आए हैं और उन्होंने केंद्र सरकार के इस रवैए की तीखी आलोचना की है । उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अपना सामंती संप्रदायिक रुख़ सामने रख दिया है । इसी के कारण वे जाति जनगणना से मुकर रहे हैं, क्योंकि चंद कारपोरेट घरानों के हाथों में ही सिमट गई है । ऐसे लोग नहीं चाहते हैं कि जातिय जनगणना से पिछड़े समाज को अपनी ताकत का एहसास हो।
उन्होंने कहा कि जनगणना में साँप-बिच्छू,तोता-मैना, हाथी-घोड़ा, कुत्ता-बिल्ली, सुअर-सियार सहित सभी पशु-पक्षी पेड़-पौधे गिने जाएँगे , लेकिन पिछड़े-अतिपिछड़े वर्गों के इंसानों की गिनती नहीं होगी। जातीय जनगणना से सभी वर्गों का भला होगा। इससे सबकी वास्तविक स्थिति का पता चलेगा।

भाजपा, संघ पिछड़ा/अतिपिछड़ा वर्ग के साथ बहुत बड़ा छल कर रहा है। अगर केंद्र सरकार जनगणना फ़ॉर्म में एक अतिरिक्त कॉलम जोड़कर देश की कुल आबादी के 60 फ़ीसदी से अधिक लोगों की जातीय गणना नहीं कर सकती तो ऐसी सरकार और इन वर्गों के चुने गए सांसदों व मंत्रियों पर धिक्कार है।

इन दलों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछा है कि क्या नीतीश कुमार में इतनी हिम्मत है कि वह अपने बल पर बिहार में जातीय जनगणना करा लें , क्योंकि पहले उन्होंने इस तरह का वायदा भी किया है । कई लोगों नीतीश कुमार से बिहार में अपने बूते जातीय जनगणना कराने की मांग भी की है।

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