संजय श्रीवास्तव
आरा। कृषि विज्ञान केंद्र भोजपुर एवं इफको भोजपुर आरा के संयुक्त तत्वावधान में बिक्री केंद्र प्रभारी प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन संयुक्त रूप से डॉ प्रवीण कुमार द्विवेदी हेड कविके भोजपुर, वाईपी सिंह उप महाप्रबंधक पटना, अजीत मिश्रा भारतीय बीज सहकारी लिमिटेड,कृषि वैज्ञानिक डॉ सच्चिदानंद सिंह एवं शशि भूषण कुमार शशि , शिशिर कुमार कनिय क्षेत्र प्रतिनिधि इफको भोजपुर नेदीप प्रज्वलित कर किया। डॉ द्विवेदी ने अपने संबोधन में कहा कि आज संतुलित उर्वरक प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि हमारे यहां अधिकांश भोजन सामग्री की गुणवत्ता में कमी देखने को मिल रही है। आपने सुझाव दिया कि अपने खेतों में हरी खाद, पोटाश,गंधक के अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक जिंक बोरोन का प्रयोग, मिट्टी जांच के आधार पर प्रयोग करना सुनिश्चित करें ।

इससे पौधों में विकास भी अच्छा होगा और बेहतर जल प्रबंधन के कारण सिंचाई जल की मांग में भी कमी होगी जो कि वर्तमान स्थिति में समय की माग है सुख मौसम होने के कारण धान या अन्य फसलों के खेतों में खरपतवार की समस्या बहुत व्यापक रूप में होती है इसके लिए विशेष रूप से सजग रहने की आवश्यकता पर बल दिया गया तथा एक सुझाव दिया गया कि उर्वरकों का प्रयोग विशेष तौर पर नेत्रजन आधारित उर्वरकों का प्रयोग संयमित रूप से करना होगा अन्यथा अत्यधिक विकास के कारण पौधे खेतों से ज्यादा नमी का अवशोषण करेंगे और सुखा होने की स्थिति में पौधों का विकास बहुत ज्यादा बाधित होगा और उत्पादन में काफी कमी देखी जा सकती है।
महाप्रबंधक श्री सिंह ने बताया कि देश में आजादी के समय की तुलना में बहुत ज्यादा उर्वरकों की मांग बढ़ी है पूरे देश में 367 लाख टन यूरिया का उपयोग हो रहा है जबकि 105 लाख टन डीएपी की खपत हो रही है इसमें से 89 लाख टन यूरिया हम आयात कर रहे हैं और डीएपी भी लगभग 70% हम विदेशों पर भी निर्भर है इसके अतिरिक्त पोटाश के लिए भी हमारे पास कोई विकल्प नहीं है इसके लिए भी हम विदेशों पर ही निर्भर हैं उर्वरकों के सही प्रयोग नहीं होने से जलवायु और भूमि में प्रदूषण हो रहा है और इसी के निदान के लिए नैनो डीएपी और नैनो यूरिया की खोज की गई और आज देश में करोड़ों बोतल उर्वरकों का प्रयोग हुआ जिससे निसंदेह पर्यावरण को बहुत ज्यादा फायदा हुआ अपनी जानकारी दी की भोजपुर जिले में चार ड्रोन इसको के द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं जिनमें से प्रत्येक के द्वारा इस खरीफ मौसम में 4000 एकड़ एवं रवि के मौसम में 5000 एकड़ इस प्रकार के सूक्ष्म उर्वरकों का छिड़काव का लक्ष्य रखा गया है।
डीआर सदानंद सिंह ने जैविक खेती की चर्चा करते हुए कहा कि जिस प्रकार से हमारी भूमि का प्रदूषण मैं वृद्धि हो रही है है इसके प्राकृतिक एवं जैविक खेती एक बेहतर विकल्प है इसमें हम किसी भी प्रकार के रसायनों का प्रयोग नहीं करते हैं और ज्यादा से ज्यादा स्थानीय रूप में प्राकृतिक संसाधनों जैसे गोबर गोमूत्र बेसन गुड के अतिरिक्त वनस्पति पौधों से प्राप्त रस का प्रयोग कर हम अपनी खेती को आगे बढ़ते हैं इसमें मुख्य रूप से सूक्ष्मजीव की संख्या बढ़ाना उद्देश्य होता है जिनका संतुलन होने से खेती बेहतर होती चली जाती है
शशि भूषण कुमार शशि ने जलवायु अनुकूल कृषि पर चर्चा करते हुए कहा कि आज जल संरक्षण एक चुनौती है और इसके लिए हमें शून्य जूता यंत्र के अतिरिक्त मेड़ों पर अपनी फसलों को लगाने का कार्य करना होगा मेड पर फसल लगाने से फसल की उत्पादन में 15 से 25% तक वृद्धि देखने को मिली है विशेष तौर पर मक्का बाजार जैसी फसले काफी अच्छा कर रही है साथ में हमें अपने खेतों में कृषि अवशेषों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करना होगा और खेत की जो चारों तरफ की जो मेड है उसको भी ऊंचा और चौड़ा करना होगा जिससे के हमारे खेतों से पानी या पानी में घूला हुआ उर्वरक आसानी से दूसरे के खेतों में न जा पाए।
भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड के बिहार प्रभारी अंजनी मिश्रा ने जानकारी दी कि भारत बीज के नाम से आने वाले समय में सहकारिता के माध्यम से बीजों का उत्पादन विपणन एवं उनके गुणवत्ता नियंत्रण पर विशेष ध्यान देने का प्रावधान किया जा रहा है इसका मूल उद्देश्य गुणवत्ता युक्त बीजों के साथ ही औसत कीमत पर किसानों के मध्य बीज उपलब्ध कराना है क्योंकि अच्छी गुणवत्ता वाले निजी कंपनियों के बीच बहुत ज्यादा महंगे हैं जो कई बार किसानों के लिए खरीदना एक चुनौती है इस कार्यक्रम से जुड़ने के लिए अभी तक देश में 17000 से ज्यादा समितियां ने अपना निबंध करने में रुचि दिखाई है कार्यक्रम के अंत में उपस्थित प्रतिभागियों के मध्य ड्रोन को प्रदर्शित किया गया एवं उसके कार्य प्रणाली से लोगों को अवगत कराया गया कार्यक्रम के समापन के अवसर पर शिशिर कुमार ने सभी को उनके बहुमूल्य योगदान के लिए धन्यवाद दिया।

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