★आकांक्षी जिला सिमडेगा से वनोत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराने हेतु पायलट प्रोजेक्ट प्रारंभ
★ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त करने की दिशा में सरकार ने बढ़ाया कदम
रांची ब्यूरो
रांची: आदिवासी समुदाय और परंपरागत वनवासियों की संस्कृति, परंपरा और आजीविका का साधन जंगल है। सदियों से जंगल से इनका अटूट संबंध रहा है। मगर लघु वनोत्पाद को इकट्ठा कर बेचने पर कभी भी लोगों को इसका सही दाम नहीं मिल पाया। अब आदिवासी समाज भी लघु वनोत्पाद को व्यवस्थित ढंग से बेचकर अपनी आजीविका को सशक्त कर पायेंगे। वनोत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराने हेतु झारखण्ड सरकार कार्ययोजना बनाने की ओर कार्य कर रही है। झारखण्ड से प्रचुर मात्रा में साल, लाह, इमली, महुआ, चिरौंजी, महुआ समेत अन्य वनोत्पाद को व्यवस्थित बाजार देने की कार्ययोजना बनाने के लिए राज्य सरकार और इंडियन स्कूल ऑफ़ बिज़नेस की भारती इंस्टिट्यूट ऑफ़ पब्लिक पालिसी के बीच हुए एमोओयू का परिणाम सामने आने लगा है। संवेदनशील मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के नेतृत्व में वनोत्पाद से जुड़ कर अपना जीवन यापन करनेवाले आदिवासी समाज को वनोत्पाद का सही मूल्य प्राप्त हो पाएगा। सरकार की इस पहल के बाद वनोत्पाद को बेच अपनी आजीविका चलाने वाले ग्रामीणों का जीवन ख़ुशहाल होगा।
सिमडेगा से शुरू हुआ कार्य
राज्य के आकांक्षी जिला सिमडेगा से वनोत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराने हेतु पायलट प्रोजेक्ट के रूप में उत्पादित वनोपज पर कार्य प्रारंभ हो चुका है। इसको लेकर उपायुक्त सिमडेगा सुशांत गौरव ने पायलट प्रोजेक्ट के सफल क्रियान्वयन की दिशा में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, हैदराबाद के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। सिमडेगा के बाद अन्य वनोपज प्रधान जिलों में इसकी शुरुआत की जाएगी। सिमडेगा में अत्यधिक मात्रा में वनोत्पाद उपलब्ध है। यहाँ के जनजातीय समुदाय तथा अन्य ग्रामीण अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए या अपनी जीविका चलाने के लिए पोषण आहार के साथ वनों से प्राप्त होने वाले विभिन्न उत्पादनों से अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त करते है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था होगी सशक्त
वनोत्पाद जनजातीय समुदाय के लिए अतिरिक्त आमदमी का प्रमुख स्रोत है। विभिन्न पौधों, पेड़ों के पत्ते, फूल, फल एवं बीज, मशरूम, कंद-मूल आदि से वे अपनी जीविका चलाते है तथा वनों से प्राप्त कुछ प्रकार के घास, तेल प्राप्त होने वाले बीज, गोंद, लाह आदि से वे आमदनी प्राप्त करते है। यह भी देखा गया है की जंगल के अंदर या आस-पास बसे लोगों को पच्चीस प्रतिशत से ऊपर आय वनों से प्राप्त वनोत्पाद को बेचकर प्राप्त होता है। सखुआ के पत्तों से ही कटोरी एवं दतवन, बीजों से तेल प्राप्त होने वाले विभिन्न पेड़ों जैसे – महुआ, करंज, कुसुम, नीम, सखुआ आदि के बीजों को अधिक मात्रा में जमा कर ग्रामीण इसे बाजार में बेचकर आमदनी प्राप्त करते है। ग्रामीण क्षेत्र में अर्थव्यवस्था सुधार की दिशा में उपलब्ध संसाधनों को सही दिशा देते हुए पायलट प्रोजेक्ट की शुरुआत की गई है।