डाॅ. रामप्रताप वैदिक
डोनाल्ड ट्रंप ने सिद्ध कर दिया है कि वह अमेरिका और पूरी मानवता के कलंक हैं। अमेरिका के इतिहास में राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर कुछ विवाद कभी-कभी जरुर हुए हैं लेकिन इस बार ट्रंप ने अमेरिकी लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाकर रख दी हैं। यही हाल भारत में मोदी ने कर रखा है। दोनों लोकतंत्र के कलंक हैं।
पहले अमेरिकी राष्ट्रपति की चर्चा। वहां उन्होंने चुनाव परिणामों को रद्द करते हुए यहां तक कह दिया कि वे व्हाइट हाउस (राष्ट्रपति भवन) खाली नहीं करेंगे। वे 20 जनवरी को जो बाइडन को राष्ट्रपति की शपथ नहीं लेने देंगे।
उनके इस गुस्से को सारी दुनिया ने तात्कालिक समझा और उनके परिवार के सदस्यों की सलाह पर वे कुछ नरम पड़ते दिखाई पड़े लेकिन अब जबकि अमेरिकी संसद (कांग्रेस) के दोनों सदन बाइडन के चुनाव पर मोहर लगाने के लिए आयोजित हुए तो ट्रंप के समर्थकों ने जो किया, वह शर्मनाक है। वे राजधानी वाशिंगटन में हजारों की संख्या में इकट्ठे हुए और उन्होंने संसद भवन पर हमला बोल दिया। उत्तेजक नारे लगाए। तोड़-फोड़ की। धक्का-मुक्की की और गोलियां भी चलाईं। चार लोग मारे गए। एक महिला को पुलिस की गोली लगी। भीड़ ने इतना आक्रामक रुख अपनाया कि सांसदों ने एक बंद पड़े भवन में घुसकर अपनी जान बचाई।
इन लोगों को भड़काने की जिम्मेदारी डोनाल्ड ट्रंप की ही है, क्योंकि वे व्हाइट हाउस में बैठे-बैठे अपनी पीठ ठोकते रहे। खुद उनके बीच नहीं गए। ट्रंप की इस घनघोर अराजक वृत्ति के बावजूद अमेरिकी संसद के दोनों सदनों ने बाइडन और कमला हैरिस की जीत पर अपनी मुहर लगा दी। उन विवेकशील रिपब्लिकन सांसदों पर हर लोकतंत्रप्रेमी गर्व करेगा, जिन्होंने अपने नेता ट्रंप के खिलाफ वोट दिया। ट्रंप तुरंत समझ गए कि उनकी अपनी पार्टी के नेता उनका विरोध कर रहे हैं। अब उन्हें राष्ट्रपति भवन में कोई टिकने नहीं देगा। उनकी हवा खिसक गई। उन्होंने हारकर बयान जारी कर दिया है कि 20 जनवरी को सत्ता-परिवर्तन शांतिपूर्वक हो जाएगा लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि उनका असली संघर्ष अब शुरु होगा। वे ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि उन्होंने अपने चार साल के कार्यकाल में मानसिक रुप से अमेरिका के दो टुकड़े कर दिए हैं।
दूसरे शब्दों में बाइडन की राह में अब वे कांटे बिछाने की कोशिश जमकर करेंगे। अमेरिका के लिए बेहतर यही होगा कि रिपब्लिकन पार्टी ट्रंप को बाहर का रास्ता दिखा दे। जिन रिपब्लिकन सांसदों ने इस वक्त ट्रंप की तिकड़मों को विफल किया है, यदि वे पहल करेंगे तो निश्चय ही अमेरिकी लोकतंत्र गड्ढ़े में उतरने से बच जाएगा।
इससे भी बुरी स्थिति भारत में मोदी और शाह की ने कर रखी है । अडानी, अंबानी जैसे कारपोरेट घरानों के बल पर इन दोनों ने भारत में लोकतंत्र को समाप्त कर दिया है । भाजपा पर पूरा कब्जा कर लिया है ।
भाजपा में दोनों नेताओं के अलावा किसी को भी निर्णय लेने की छूट नहीं है। पिछले तीन-चार सालों में यह स्थिति स्पष्ट हो गई है कि किस प्रकार इन लोगों ने भारत में विपक्ष को समाप्त करके लोकतंत्र का ही बेड़ा गर्क कर दिया है।
ताजा किसान आंदोलन से स्थिति साफ हो गई है। पिछले 45 दिनों से इस सरकार ने अपने तानाशाही को साबित कर दिया है ।उसे देश के करोड़ों किसानों की मांगों से कोई मतलब नहीं है । उसे सिर्फ चंद कारपोरेट घरानों के भलाई से खुशी देखना है। एक अर्थ में मोदी और शाह ने लोकतंत्र को समाप्त करके थैलीशाहों की कठपुतली सरकार की स्थापना कर दी है । और निकट भविष्य में चेहरे बदल जाएं लेकिन ऐसे ही कठपुतली सरकार आएगी। जो हम लोगों मध्यवर्ग गरीबों किसानों के पक्ष में कोई फैसला नहीं लेगी । मतलब भारत में पुराना राजतंत्र और जमींदारों का शासन वापस आ गया है। भारत में अमेरिका से भी बुरी स्थिति है । लेकिन इसे यहां का गोदी मीडिया छुपा रहा है। भारत की मोदी सरकार ने एक काम य किया है कि उसने पूरे देश में लगभग दो, ढाई करोड़ भयानक अंध भक्तों की फौज भी खड़ी कर दी है , जो उसके हर कदम में साथ देती है और उसकी बुद्धि भी भाजपा के आईटी सेल के माध्यम से मार दी गई है । अंधभक्त अपने सामने पखाना और मल मूत्र को देखते हुए भी उसे केक और पिज्जा बर्गर समझ कर खाते हैं , यानी उसके टोटल बुद्धि पर कब्जा कर लिया गया है। उसके सोचने समझने की शक्ति समाप्त कर दी गई है। । यह देश के लिए सर्वाधिक खतरनाक बात है।