पुण्यतिथि पर नम आँखों से मैं भावभीनी श्रद्धांजलि
 
विजय शंकर 
नयी दिल्ली : पूर्व राज्यसभा सांसद आर के सिन्हा ने आज कहा कि 
चित्तरंजन दास महान स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और वकील थे। आज उनकी पुण्यतिथि पर नम आँखों से मैं भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
 
5 नवंबर 1870 को कोलकाता में जन्मे चितरंजन को लोग प्यार से ‘देशबंधु’ पुकारते थे। सन्‌ 1892 ई. में बैरिस्टर बने और 1906 में कांग्रेस के सदस्य बन गए, 1908 में ‘वंदेमातरम्‌’ के संपादक  अरविंद घोष पर चलाए जा रहे मुक़दमे ‘अलीपुर षड़यंत्र काण्ड’ में बचाव करने पर उनकी ख्याति फैल गई। देशबन्धु को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का राजनीतिक गुरु माना जाता है। जब “बम बनाने के आरोप में” महर्षि अरबिन्दो पर मुकदमा चलाया जा रहा था तब देशबंधु महर्षि का बचाव कर रहे थे और उन्होंने बहस के दौरान अंग्रेज़ जज को कहा – “किसी भी देश के नागरिक पर देशप्रेम के लिए आप मुकदमा चलाएं, यह कहाँ का न्याय है? यदि देशप्रेम इस देश में अपराध है तो पहला अपराधी मैं हूँ।”
इस वक्तव्य के बाद सीआर दास रातोंरात देशभर में “देशबन्धु” के नाम से प्रसिद्ध हो गये थे। वे क्रांतिकारियों और राष्ट्रवादियों के मुकदमों में अपना पारिश्रमिक नहीं लेते थे। 1917 में बंगाल की प्रांतीय राजकीय परिषद् के अध्यक्ष हुए, और तभी से राजनीति में सक्रिय हो गए। 1918 में रौलट एक्ट का बहुत विरोध किया तथा महात्मा गांधी के सत्याग्रह का समर्थन किया, सारे देश का भ्रमण किया और कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार किया, कई बार जेल गए, और अपनी समस्त सम्पत्ति राष्ट्रहित में समर्पित कर दी। उनके प्रस्ताव, की, बाहर से आंदोलन के बजाए काउंसिल्स में घुसकर अड़ंगा लगाने की नीति को कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया जिसके फलस्वरूप इन्होंने अध्यक्ष पद से त्याग दे कर मोतीलाल नेहरु और सुहरावर्दी के साथ ‘स्वराज दल’ की स्थापना की, परंतु 1923 में कांग्रेस ने उनके ‘काउंसिल एंट्री’ की पहल को मान लिया। 1924-25 में वे कलकत्ता महापालिका के मेयर चुने गए। 1925 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, और और आज ही के दिन 16 जून 1925 को दार्जिलिंग में उनकी मृत्यु हो गयी। गांधीजी के नेतृत्व में उनकी अंतिम यात्रा कोलकाता में निकाली गयी। गाँधी जी के शब्दों में ‘देशबंधु’ ऐसी महान आत्मा थे जिन्होंने सिर्फ एक ही सपना देखा था…आज़ाद भारत का सपना …और कुछ नहीं…और उनके मन में अंग्रेजों प्रति भी कोई दुर्भावना नहीं थी। आज उनकी पुण्यतिथि पर नम आँखों से मैं भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

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