नवराष्ट्र मीडिया ब्यूरो

पटना, 21 जुलाई । जदयू के प्रदेश महासचिव सह प्रवक्ता राजीव रंजन ने आज कहा है कि कांवर यात्रा में समाज के हर जाति के लोग शामिल होते हैं. यात्रा में कोई किसी की जाति नहीं पूछता. हर कांवरिये को ‘बम’ का उपनाम दिया जाता है. कांवड़ियों की सुविधा के लिए जगह-जगह कैंप लगाते हैं और भंडारे चलाते. काँवड़ियों के जख्मों पर मरहम लगाया जाता है, उनके पैरों को दबाया जाता है. भोजन-पानी-आराम-दवा सबकी व्यवस्था लोग करते हैं, जिसमें एक ही भाव होता है-‘बम यानी शिव भक्तों की सेवा’. न तो कोई सेवा करने वालों की जाति पूछता है और न ही सेवा करवाने वालों. क्योंकि महादेव सबके होते हैं. बिना किसी भेदभाव के होने वाली यात्रा ही शिवपूजन को खास बनाती है.

उन्होंने कहा कि लेकिन ठेलों, रेहड़ी और दुकानों आदि पर नाम लिखवाने से इस यात्रा में जातिगत वैमनस्यता को बढ़ावा मिलेगा. इससे यात्रा की पवित्रता भंग होगी. लोगों में जाति-धर्म के नाम पर फूट डालकर राज करने में पारंगत सपा-कांग्रेस जैसे वंशवादी दलों ने इसीलिए इस कानून को लाया था. याद करें तो उनके राज में यूपी में कांवर यात्रा पर कई जगह पथराव करवाया जाता था और आरोप असमाजिक तत्वों के बजाए धर्मविशेष पर लगाया जाता था. इससे समाज में विभेद पैदा होता था और सपा-कांग्रेस को वोटों की फसल काटने में आसानी होती थी.

विपक्ष पर निशाना साधते हुए जदयू महासचिव ने कहा कि सपा-कांग्रेस के कानून को जस का तस लागू कर हकीकत में भाजपा उनके जाल में फंस रही है. उन्हें समझना चाहिए कि इससे केवल धार्मिक स्तर पर ही नहीं बल्कि जातिगत स्तर पर भी भेदभाव को बढ़ावा मिलेगा. लोग दलितों, पिछड़ों व अतिपिछड़ों से भी सामान खरीदने से कतरायेंगे. साथ दुकानों पर नाम लिखने के बाद यदि लोग जाति के नाम पर सेवा कैंप लगवाने की मांग शुरू कर दें तो ऐसे में सरकार क्या उसे भी मानेगी?

उन्होंने कहा कि बिहार सरकार कांवर यात्रा के महत्व को समझती है. हर वर्ष करोड़ों लोग इसमें शामिल होते हैं और सारा आयोजन सामाजिक स्तर पर ही निपट जाता है. कहीं कोई उपद्रव नहीं होता. बल्कि लोगों में एकता की भावना मजबूत होती है. इसीलिए हर किसी को इस मामले में बिहार माॅडल अपनाना चाहिए।

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