-समाजसेवी विजय कुमार की भारत पैदल यात्रा के 64 दिन पूरे
-बिहार, बंगाल, सिक्किम, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड मिलाकर कुल 7 राज्यों का भ्रमण पूरा
विजय शंकर
इम्फाल (मणिपुर) : समाजसेवी विजय कुमार की भारत पैदल यात्रा के 64 दिन पूरे हो चुके हैं । इस यात्रा में समाजसेवी ने बिहार, बंगाल, सिक्किम, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड मिलाकर कुल 7 राज्यों का अपना भ्रमण पूरा कर लिया है । भ्रमण के 64 दिनों में समाजसेवी विजय कुमार ने न सिर्फ हजारों लोगों से मुलाकात की बल्कि हजारों लोगों ने समाजसेवी विजय कुमार को पैदल यात्रा करने में अपनी सहानुभूति दिखाई, अपना समर्थन दिया, भोजन कराया, रात्रि विश्राम के लिए जगह दी । 64 दिनों की हिंदी व गैर हिंदी पूर्वोत्तर राज्यों की यात्रा में इन्हें जंगलों , पहाड़ों व खाईयों से गुजरना पड़ा । यहाँ तक की जान जोखिम में डालकर नाव पर अपने मिनी ट्रक को लादकर दो बड़ी नदियों को पार भी करना पड़ा ।
उल्लेखनीय है कि समाजसेवी विजय कुमार ने 26 जनवरी 2022 को पटना के गांधी मैदान से अपने भारत पैदल यात्रा शुरू की है और अब इम्फाल (मणिपुर) तक पहुँच गए है जिसमें समाजसेवी ने अपना पहले दिन का रात्रि विश्राम पटना साहिब गुरूद्वारे में किया था । कारवां आगे बढ़ता गया और पटना से हाजीपुर होते हुए किशनगंज होते हुए बंगाल के कई जिलों को छूते हुए समाजसेवी पहले सिक्किम पहुंचे और फिर सिक्किम से निकलकर उन्होंने असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और फिर मणिपुर तक की यात्रा पूरी कर ली है । अपने 64 दिनों की यात्रा के बाद उन्होंने जो कुछ महसूस किया उसके बारे में बताया कि भारत अनेकता में एकता और विविधताओं से भरा हुआ देश है । अनेक भाषाओं और धर्म के लोग भारत देश में रहते हैं और इसीलिए देश के जो संस्कार हैं उन संस्कारों की बात पूरे विश्व में होती है ।
उन्होंने कहा कि देश में राष्ट्रीय भाषा हिंदी है जिसे भारत सरकार ने मान्यता दी है, मगर यह दुर्भाग्य की बात है कि हिंदी भाषा को सभी राज्यों में पढ़ा, सुना और बोला नहीं जाता । क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान के बीच अगर राज्य सरकार के उच्चाधिकारी, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी अगर राष्ट्रभाषा हिंदी को नहीं बोलते-समझते हैं यह दुर्भाग्य की बात है । राष्ट्रभाषा हिंदी को नहीं समझना एक दुर्भाग्य की बात है । उन्होंने कहा, पूरा देश अनेकता में जिस तरह एक है, वैसे ही भाषाओं में भी एक हिंदी कामन होना चाहिए, कम से कम भारतीय प्रशासनिक सेवा के लोग तो यह बात समझे और माने और बोले भी ।
समाजसेवी विजय कुमार ने कहा कि किसी राज्यों में कल्चर, एग्रीकल्चर, हेल्थ और एजुकेशन को अगर सही कर दिया जाए तो निश्चित रूप से राज्य का समेकित विकास संभव हो जाएगा । इन चारों चीजों, व्यवस्थाओं को अगर ठीक कर दिया जाए राज्य की पहचान बन जाएगी मगर फिलहाल राज्यों की सरकारों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया व नहीं ले रही है । उन्होंने कहा कि जिस तरह हर राज्यों में युवा उपेक्षित हैं और प्रशासनिक व्यवस्था निरंकुश है, वैसे में जरूरी है कि व्यवस्था में परिवर्तन किया जाए । उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जैसे दोनों सर्वोच्च पदों के लिए चुनाव की प्रक्रिया बदलनी चाहिए और सीधे चुनाव से इन दोनों का निर्वाचन होना चाहिए और जनता के पास यह हक होना चाहिए । जनप्रतिनिधि, सांसद, विधायक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को चुनते हैं । ऐसा होने से देश के इन दो सर्वोच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों पर अनावश्यक दबाव बनता है और जनप्रतिनिधि, लोकसभा, राज्यसभा के सांसद और विधायक, विधानपार्षद उन पर अनावश्यक दबाव बनाने में सफल हो जाते हैं । इनको दबाव से मुक्त करना जरूरी है, तभी व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन हो पाएगा ।
उन्होंने कहा कि भ्रमण के दौरान हर राज्य के मुख्यालयों व राजधानियों में 2 दिनों का अनशन करना चाहते थे मगर अब तक किसी भी राज्य ने इसके लिए अनुमति नहीं दी जबकि सारी प्रक्रियाएं विधिवत पूरी की जा रही हैं । किसी ने सुरक्षा को कारण बताया तो किसी ने कोरोना का हवाला दिया । यह जनतांत्रिक अधिकारों का हनन मैं मानता हूं । जनता ही सर्वोपरि है और देश का जनतंत्र-प्रजातंत्र ही सर्वोच्च है जिसका लोप होता दिख रहा है ।