विजय शंकर  

पटना : बिहार इण्डस्ट्रीज एसोसिएशन ने अपने प्रांगण में बिहार की आर्थिक विकास तथा प्रति व्यक्ति आय को कैसे ऊपर उठाया जाय जिससे कि यह कम से कम राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंच सके, इस विषय पर एक विचार मंथन सत्र का आयोजन किया। उपरोक्त विचार मंथन सत्र में आद्री के सदस्य सचिव डा0 पी. पी. घोष, एसोसिएट प्रोफेसर डा0 सुधांशु कुमार, ए.एन. सिन्हा इंस्टीच्यूट के सहायक प्रोफेसर डा0 विद्यार्थी विकास, डभलपमेंट मेनेजमेंट इंस्टीच्यूट के सहायक प्रो0 डा0 सूर्य भुषण, पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्षा प्रो0 डा0 सरोज सिन्हा, चन्द्रगुप्त इंस्टीच्यूट ऑफ मेनेजमेंट के सहायक प्रो0 डा0 शिवानन्द सेनापति एवं बिहार इंस्टीच्यूट ऑफ इकोनोमिक स्टडीज के निदेशक डा0 प्यारे लाल ने भाग लिया तथा सम्बन्धित विषय पर अपने विचार साझा किया।


एसोसिएशन के अध्यक्ष अरूण अग्रवाल ने कार्यक्रम में भाग लेने आये अतिथि वक्ता एवं अन्य सभी लोगों का स्वागत किया। उद्घाटन उदबोधन में उन्होंने कहा कि आज बिहार में प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति औसत आय से लगभग एक तिहायी है जो चिन्तनिय है। आज हम सभी यहां इस बात पर विचार विमर्श करने हेतु एकत्र हुए हैं। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद एवं प्रति व्यक्ति आय में सुधार हेतु किस प्रकार के प्रयास की आवश्यकता है।

चर्चा एवं विचार विमर्श के उपरान्त यह बात उभर कर सामने आयी कि राज्य के विकास को त्वरित करना है तो निम्न बिन्दु पर काम करना होगा।

1. कृषि प्रक्षेत्र को विकसित करना आवश्यक है क्योंकि कृषि के माध्यम से ही बिहार जैसे प्रदेश जहां 87 प्रतिशत जनता कृषि से जुड़ी है, स्थायी विकास के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है।
2. पुनः कृषि प्रक्षेत्र को विकसित एवं प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक है कि कृषि उत्पाद का मूल्य संवर्द्धन हो जो कृषि आधारित उद्योगों को विकसित कर प्राप्त किया जा सकता है।
3. राज्य के पास एक बड़ी मानव संसाधन है जिसका राज्य के विकास में योगदान हो सकता है। ऐसे उदाहरण है जिन्होंने अपने मानव संसाधन के आधार पर विकास को गति दी है। मानव संसाधन को राज्य के विकास में योगदान देने के लिए आवश्यक है कि उसके शिक्षा तथा कौशल विकास पर योजनाबद्ध तरिके से काम करने की आवश्यकता है।
4. जनसंख्या भी एक बहुत बड़ा कारण है राज्य के विकास दर को कम करने में, अतः जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है क्योंकि संसाधन सीमित है और बढ़ती जनसंख्या का विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
5. राज्य में उपलब्ध संसाधनों का वास्तविक मैपींग हो तभी ही विकास का सही योजना का निर्धारण किया जा सकता है।
6. यदि किसी राज्य या क्षेत्र का विकास उसके वर्तमान परिस्थितियों में नहीं होता है तो विशेष प्रयास एवं संसाधन की आवश्यकता होती है इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि जिन राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया उनका विकास तेजी से हुआ। अतः बिहार के परिपेक्ष्य में आवश्यक है कि केन्द्र सरकार बिहार को भी विशेष राज्य का दर्जा प्रदान कर आगे बढ़ाने का प्रयास करे।
चर्चा में बीआईए के अध्यक्ष अरूण अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष केपीएस केशरी,  रामलाल खेतान, महासचिव आशीष रोहतगी, पूर्व उपाध्यक्ष सुनील कुमार सिंह,  संजय भरतिया,  जीपी सिंह, संजय गोयेनका सहित बड़ी संख्या में सदस्यगण उपस्थित थे।

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