नवराष्ट्र मीडिया ब्यूरो

पटना। राज्य के विभिन्न थानों को अब पैसे की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा । उनको पैसे की कमी होने पर उसे तुरंत पुलिस हेड क्वार्टर से पैसे भेज दिए जाएंगे ।
पैसे का दुरुपयोग नहीं हो इसलिए पैसा किसी अफसर को नहीं जाएगा, बल्कि थानों के नाम बैंक अकाउंट खोले जाएंगे । उसी बैंक खाते में सीधे पैसे आएंगे लेकिन पहले किए गए खर्च का हिसाब किताब भी देना पड़ेगा।
दरअसल, अधिकतर थाना को पैसे की कमी से जूझना पड़ता था और वह अक्सर पैसे की कमी के कारण गश्ती आदि जरूरी कार्य से भी मुंह चुराते थे। पेट्रोल और डीजल भी हमेशा उधार पर ही लेना पड़ता था। इन सब को देखते हुए सरकार ने नई व्यवस्था की है।
पुलिस मुख्यालय ने थानों में होने वाले सामान्य खर्च को देने के लिए बिहार के सभी थानों को तीन श्रेणियों में बांटकर राशि आवंटित करने का निर्णय लिया है.
थानों के लिए लिए एक खाता पैरंट चाइल्ड अकाउंट के तर्ज पर काम करेगा. जिसकी मॉनिटरिंग बिहार पुलिस मुख्यालय से होगी.बिहार में कुल 1067 थाने हैं, जिन्हें तीन श्रेणियों ए बी और सी में बांटा गया है. ए श्रेणी वाले थानों को 1,00000 सालाना प्रदान किया जाएगा तो वहीं बी श्रेणी वाले थानों को 60,000 मुहैया कराया जाएगा. जबकि सी श्रेणी यानी छोटे थानों को 40,000 सालाना प्रदान किया जाएगा.पुलिस मुख्यालय के अनुसार, इसके तहत सभी थानों में निर्धारित राशि की एक चौथाई राशि हमेशा उनके खाते में मौजूद रहेगी. यह राशि जैसे ही खत्म होगी तुरंत करंट अकाउंट में उतनी राशि ट्रांसफर हो जाएगी. पुलिस मुख्यालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 900 थानों को बैंक खाता खोलने का निर्देश दिया गया है, जिसमें से 400 थानों में खाता खोलने की प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली गई है. जिसमें राशि भी ट्रांसफर कर दी गई है.बिहार पुलिस मुख्यालय ने निजी बैंक एचडीएफसी के साथ बैठक कर पूरी योजना के तहत काम करने का निर्देश दिया है. 15 दिनों के अंदर सभी थानों का खाता खोलकर राशि ट्रांसफर करने को कहा गया. इसका मुख्य उद्देश्य ये है कि कैदियों को ले जाने और लाने वाले खर्च के साथ-साथ स्टेशनरी, ट्यूबलाइट और थानों में छोटे मोटे खर्चे इन पैसों से किए जाएं.
बता दें कि पहले थानों को पैसे निकासी के लिए बड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था. अब थाने के बैंक अकाउंट से तुरंत पैसे निकाले जा सकेंगे. यह राशि छोटी-मोटी जरूरतों के साथ-साथ इमरजेंसी फंड के तौर पर भी काम करेगी. इससे थानों की आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी. साथ ही उनके खर्चों पर भी मुख्यालय से नजर रखी जाएगी।

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