◆ लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने के बारे में सोचे सरकार, 19 लाख रोजगार का वादा पूरा करे
vijay shankar
पटना : भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कोरोना काल में एक रिपोर्ट के मुताबिक असंगठित क्षेत्र में 14.25 लाख और संगठित सेक्टर में 60 हजार नौकरियों की समाप्ति पर गहरी चिंता व्यक्त की है. निजी स्कूलों के बन्द होने से 6 लाख शिक्षक-कर्मचारी भी विगत एक साल से सड़क पर हैं और उनका परिवार भुखमरी की स्थिति में है. यह बेहद चिंताजनक है.
कोरोना व लॉकडाउन के कारण बेरोजगारी बिहार में चरम पर पहुंच गई. ग्रामीण इलाकों में भी गहरा असर पड़ा. पर्यटन और सेवा क्षेत्र पूरी तरह से ठप हो गए.
सेंटर फॉर इंडियन मोनिटरिंग इकॉनमी के सर्वे के अनुसार अप्रैल-मई 2020 में बेरोजगारी दर 46 प्रतिशत तक पहुंच गई. जून 2021 में भी यह दर 10.50 प्रतिशत से अधिक बनी बनी हुई है.
लॉक डाउन का बैंकों की जमा राशि पर भी असर पड़ा. लोग फिक्स डिपॉजिट भी तोड़ते रहे. इसका एक बड़ा कारण कोरोना के कारण कामकाज ठप होना और रोजगार का जाना है. रियल स्टेट में भी दो हजार करोड़ की योजनाओं पर असर पड़ा है और बड़ी संख्या में लोग प्रभावित भी हुए हैं.
जबकि कोरोना काल में नीतीश जी ने प्रवासी मजदूरों के लिए राज्य के अंदर ही रोजगार उपलब्ध कराने की बात कही थी. इन आंकड़ों से साफ जाहिर है कि सरकार ने इस दिशा में किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं किया. बेरोजगारी बढ़ते गई, लोगों का जीवन दूभर होता गया और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही.
अब जबकि स्थिति सामान्य हुई है सरकार को इस दिशा में ठोस व त्वरित कदम उठाना चाहिए, लेकिन उसका रवैया ढाक के तीन पात वाला बना हुआ है.
चुनाव के समय भाजपा-जदयू ने 19 लाख रोजगार देने का वादा किया था. यदि वह अपने इस वादे पर अमल करती तो जाहिर है बेरोजगारी की इस भयानक स्थिति में कुछ सुधार होता. ‘डबल इंजन’ की सरकार ने बिहार को कई वर्ष पीछे धकेलने का काम किया है.
हमारी मांग है कि अर्थव्यवस्था में गति लाने के लिए सरकार 19 लाख रोजगार उपलब्ध कराने की गारंटी करे. बिहार में इससे कहीं अधिक पद खाली पड़े हैं, फिर सरकार को बहाली करने में क्या परेशानी है? लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए हमने प्रति परिवार प्रति महीना 10 हजार रुपया देने की मांग की थी, सरकार ने उसपर भी कोई विचार नहीं किया.
यदि अर्थव्यवस्था में गति लानी है तो मनरेगा के तहत लोगों को रोजगार देना होगा. आज बिहार में इस स्कीम के तहत कहीं भी रोजगार नहीं मिल रहा है. शहरी इलाकों में भी सरकार मनरेगा की तर्ज पर काम आरम्भ करवाये.
एक तरफ कोरोना-लॉक डाउन की मार है तो दूसरी ओर बाढ़ ने भी गजब तबाही मचा रखी है. दिल्ली-पटना की सरकार बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने में असफल रही है. फसलें मारी जा चुकी हैं. ऐसे में बेरोजगारी दर कैसे कम होगी? अतः सरकार सभी किसानों को 25 हजार रुपये प्रति एकड़ की दर से फसल क्षति मुआवजा भी दे.