नीति आयोग की रिपोर्ट ने बिहार में विकास की एक बार फिर से पोल खोली.

भूमि सुधार है बिहार के विकास की असली कुंजी, जिससे भाग खड़ी हुई है नीतीश सरकार.
विजय शंकर  

पटना : भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा है कि नीति आयोग की रिपोर्ट ने बिहार में भाजपा-जदयू के तथाकथित विकास के दावे की पोल खोल दी है. वास्तविकता से मुंह छुपाने के लिए नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार को विशेष राज्य के दर्जे का सवाल उठा रहे हैं. लेकिन भाजपा-जदयू को अब यह जवाब देना होगा कि विगत 16 सालों से बिहार में और विगत 7 सालों से केंद्र मे भाजपा की ही सरकार है, तब फिर बिहार को आज तक विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिला? हमारी पार्टी नीतीश कुमार से भी पहले बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग उठाते रही है, लेकिन नीतीश कुमार के लिए यह महज पाॅलिटिकल स्टंटबाजी है.

आगे कहा कि सभी अर्थशास्त्रियों ने एक मत होकर कहा है कि बिहार के विकास की असली कुंजी भूमि सुधार का एजेंडा है, लेकिन नीतीश कुमार ने इस एजेंडे से विश्वासघात किया है. यहां तक कि अपने ही द्वारा गठित डी बंद्योपाध्याय आयोग की रिपोर्ट को भी ठंडे बस्ते में डालकर बिहार में जनपक्षीय विकास की संभावना को खत्म करने में ही लगे हुए हैं. यदि सरकार वास्तव में बिहार का विकास चाहती है तो उसे अविलंब भूमि सुधार आयोग की रिपोर्ट लागू करनी चाहिए.

राज्य में उद्योग धंधे लंबे समय से बुरी हालत में हैं. नीतीश राज में तो जो कुछ उद्योग बचे हुए थे, वे भी आज बंद हो चुके हैं. हाल ही में कई चीनी मिलें बंद कर दी गईं. उद्योग के नाम पर सरकार खाद्य पदार्थों से इथेनाॅल बनाने के काम में लगी हुई है. इससे बिहार का तो कोई भला नहीं ही होगा, उलटे आने वाले दिनों में खाद्यान्न का गहरा संकट पैदा हो जाएगा और भुखमरी का भूगोल और विस्तृत हो जाएगा. सरकार की इस जनविरोधी कदम का हमारी पार्टी सहित सभी लोग विरोध कर रहे हैं, लेकिन सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है. सरकार के पास कृषि आधारित उद्योगों के विकास का कोई एजेंडा ही नहीं है.

जिस राज्य की ऐसी स्थिति हो, वहां भला मुनाफे का बजट कैसे बन सकता है? लेकिन हमने देखा कि बिहार सरकार का पिछला बजट घाटे का नहीं बल्कि मुनाफे का बजट था. राज्य में ठेका आधारित काम कराए जा रहे हैं, लोगों को न्यूनतम राशि भी नहीं मिलती है. ऐसे में लोगों की क्रय शक्ति कैसे बढ़ेगी?

सरकार के पास अपने संसाधनों से विकास करने की न दृष्टि है और न राजनीतिक इच्छा शक्ति. जल विशेषज्ञों की राय है कि यदि जल संसाधन का ठीक से उपयोग हो तो कृषि क्षेत्र में विकास किया जा सकता है. लेकिन सोन नहर प्रणाली लंबे समय से मरणासन्न है. कदवन डैम संबंधी कई परियोजनाओं को सरकार ने उपेक्षित छोड़ रखा है. ऐसी स्थिति में बिहार का विकास कैसे संभव है?

भाकपा-माले बिहार में जनपक्षीय विकास के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग के साथ-साथ भूमि सुधार, कृषि आधारित उद्योगों के विकास और ठेका प्रथा को समाप्त कर स्थायी बहाली के सवाल पर अपनी लड़ाई जारी रखेगी.

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