सुबोध ,
किशनगंज 21 अक्टूबर। दीपोत्सव या दीपावली यानि दीपों का त्यौहार का नाम आते ही कल्पनाओं में जग-मग करते जलते दीप की छवि उभर आती है और दीपावली का अवसर आते ही मिट्टी के दीपक बनाने का शिलशिला बीते कई महीनों में कुम्हार समाज का पुरा परिवार मिट्टी के दीपक बनाने में जुटे रहते हैं। ताकि दीपावली से पहले शहर के बजारों में ज्यादा से ज्यादा दीप बेचकर अपने -अपने घरों में भी वे लोग दीपावली का त्यौहार मना सके।जब शहर के बाजार में मिट्टी के दीपक के खरीदार ही नही मिले तो दीप विक्रेता कुम्हार समाज में मायूसी होना लाज़मी है।आज किशनगंज मुख्यालय के गांधी चौक पर दीपों का बाजार सजा था मगर दीप विक्रेता के दुकान पर खरीदार ही नही दिखा और दीप विक्रेता कड़ी धूप में मायूस होकर इधर -उधर आने -जाने वाले को निहारता कि कोई खरीदर तो नही है जब कोई खरीदार करीब पहुंचकर दाम पूछकर चला जाता है ।तो मन ही मन कुछ सोच में पड़ जाता ।मानो वह यही सोचता हो कि मेरे हाथों से बने दीपों से जब उनके घर में दीपावली मनेगी तभी तो मेरे घरों में भी दीपावली मनेगा और खरीदार के बिना दीप विक्रेता के मायूसी चेहरे से न जाने बहुत कुछ कहता नज़र आ जाता है।
भारतीय संस्कृति में दीपोत्सव का एक खास इतिहास है माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा राम के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। तब श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाऐं थे। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी थी।आज भी वही परम्परा हमारे समाज में चली आ रही है लेकिन भारतीय संस्कृति के इस परम्परा पर आज पाश्चात्य संस्कृति का वर्चस्व व्याप्त है। जिसके कारण आज भी त्यौहार वही दीपावली है और परम्परा भी ऐतिहासिक ही है मगर लोग दीपावली की जगह मोमवत्तावली और बल्बावली मनाने लगें हैं । तो मिट्टी के दीपक बनाने कुम्हार समाज के घर कैसे मनेगी दीपावली ?
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2022 का दीपोत्सव यानि बड़ी दीपावली-अमावस्य कार्तिक मास 23 अक्टूबर एवं छोटी दीपावली 22 अक्टूबर को मनेगी।इसलिए पूर्व से ही शहर के बाजार में जगह -जगह मिट्टी से बने दीपक की दुकाने सजी हैं।

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