मथुरा में आज पूरे उत्साह के साथ हो रही है लट्ठमार होली
विश्वपति
नव राष्ट्र मीडिया
मथुरा।
हर साल विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग बरसाना आ गये हैं। फाल्गुन मास की शुक्ल की नवमी तिथि को बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है।
इस होली की खास बात यह होती है कि ब्रज की गोपियां ,वहां की महिलाएं लट्ठ के साथ होली खेलती हैं और वहां के पुरुष, गोप गण खुद को लाठियों से बचाते हुए रंग गुलाल खेलते हैं। इस लठमार होली का एक अद्भुत और सुंदर समां बनता है। एक खास आध्यात्मिक अनुभूति से भक्तगण से लेकर स्थानीय निवासी ओतप्रोत हो जाते हैं।
फाल्गुन के महीने होली का त्योहार देश-विदेश में धूमधाम से मनाया जाता है , लेकिन रंगों की होली से पहले ब्रजवासियों के होली मनाने का अपना अलग ही अंदाज है।
यहां कहीं फूल की होली, कहीं रंग-गुलाल, कहीं लड्डू होली तो कहीं लट्ठमार होली खेलने की परंपरा है। अष्टमी तिथि को लड्डू मार होली होती है । इस दिन श्री जी के महल से भक्तों के ऊपर लड्डू की वर्षा होती है और लड्डू के दाने चुनने, उसे कैच करने की होड़ भक्तों में दिनभर लगी रहती है। भक्तों उसे प्रसाद रूप में पाते हैं।
हर साल लट्ठमार होली देखने के लिए दुनियाभर से लोग बरसाना आते हैं। इस साल कहीं कोविड-19 कोई प्रकोप नहीं है। मौसम भी अनुकूल है। इसीलिए पड़ोसी राज्य हरियाणा ,मध्य प्रदेश, राजस्थान , उत्तराखंड तथा उत्तर प्रदेश के तमाम जिला से लेकर बिहार से भी हजारों भक्त यहां डेरा डाले हुए हैं । हजारों विदेशी सैलानी भी लठमार होली को देखने कहा रुक गए हैं। इससे मथुरा वृंदावन, गोवर्धन एरिया समेत पूरे ब्रज के सारे होटल धर्मशाला भक्तों श्रद्धालुओं सैलानियों और पर्यटकों से पूरी तरह भर गए हैं।
ये होली राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक मानी जाती है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मथुरा के बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है और दशमी तिथि को नंदगांव में इस परंपरा का निर्वहन किया जाता है।
इस वर्ष भी आसपास के राज्यों से हजारों भक्त
लठमार होली देखने और उसे खेलने मथुरा तथा बरसाना पहुंच चुके हैं । इसमें बिहार से भी बड़ी संख्या में भक्तों की टोली वहां 3 दिन पहले से ही पहुंच गई है । भक्तों की टोलियां 27 फरवरी से ही होलीकाष्टक शुरू होने के साथ ही वहां रंग गुलाल में डूब चुकी है।
ब्रज में इस साल लट्ठमार होली 28 फरवरी को खेली जा रही है। विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। इस होली में खास तरह के प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। ये रंग-गुलाल टेसू के फूल से बने होते हैं। बाजार तथा फैक्ट्री के बने कृत्रिम रंग का उपयोग नहीं होता है।
लट्ठमार होली का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार द्वापरयुग में नंदगांव के नटखट कन्हैया अपने ग्वालों के साथ बरसाने की राधा रानी और अन्य गोपियों के साथ होली खेलने और उन्हें सताने के लिए बरसाना जाते थे। हंसी ठिठोली करते कान्हा को सबक सिखाने के लिए राधा रानी छड़ी लेकर कान्हा और उनके ग्वालों के पीछे भागती हैं और छड़ी मारती थीं।
इसी परंपरा को निभाते हुए हर साल फाल्गुन माह में बरसाने की महिलाएं और नंदगांव के पुरुष लट्ठमार होली खेलते हैं। नंदगांव के पुरुष कमर पर फेंटा बांधकर कान्हा की ढाल के साथ और महिलाएं राधा रानी की भूमिका निभाते हुए लाठियों के साथ हुरियारों संग रंगीली होली खेलते हैं।
कैसे खेली जाती है लट्ठमार होली ?
नंदगांव की टोलियां रंग, गुलाल लेकर महिलाओं संग होली खेलने बरसाना पहुंचते हैं। इस होली में गोपियां हुरयारों का लट्ठ और गुलाल दोनों से स्वागत करती हैं। महिलाएं उन पर खूब लाठियां बरसाती हैं।
वहीं पुरुष ढाल की मदद से लाठियों से बचने का प्रयास करते हैं। लट्ठमार होली खेलते समय हुरियारे और हुरियारन रसिया गाकर नाचते हैं और उत्सव मनाते हैं। अगले दिन नंदगांव में भी यही आयोजन किया जाता है। विद्वानों के मुताबिक इस परंपरा की शुरुआत पांच हजार साल से भी पहले हुई थी। यह परंपरा अभी भी जारी है वर्ष 2020 और 2021 में कोविड प्रकोप के दौरान भी हजारों भक्तों ने सामूहिक रूप से कृष्ण भक्ति की और परंपरा को जीवित रखते हुए लठमार होली खेली।