व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित पुस्तक का साहित्य सम्मेलन में हुआ लोकार्पण, आयोजित हुई लघुकथा-गोष्ठी

vijay shankar

पटना। परिपक्व हो रही पीढ़ी में, जिन लेखकों ने अपनी कठोर साधना से पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है, उनमें श्रीकांत व्यास एक उल्लेखनीय नाम है। साधना में कोई बाधा न पड़े, इसलिए व्यास जी ने विवाह तक नहीं किया। लगभग ३० वर्ष के अपने साहित्यिक-जीवन में, कथा-साहित्य, नाट्य-साहित्य और व्यंग्य-साहित्य में इन्होंने एक सार्थक स्थान बनाया है।
यह बातें रविवार को साहित्य सम्मेलन में आयोजित, श्री व्यास की ५० पूर्ति पर, उन पर केंद्रित पुस्तक ‘समकालीन साहित्यकारों की दृष्टि में श्रीकांत व्यास’ के लोकार्पण-समारोह एवं लघुकथा-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि व्यास जी एक भोले लेखक हैं। इनके मन में जो भी विचार आते हैं, उनमे कुछ भी लपेटे विना, उसी रूप में व्यक्त करते चलते हैं। इसलिए भले ही इनकी रचनाओं में चिकनाई नहीं मिले और खुरदरापन दिखाई दे, किंतु ये खरी-खरी और सीधी-सीधी बात कहते हैं। ऐसे लेखकों को उनका मूल्य देर से किंतु पर्याप्त मिलता है।
समारोह का उद्घाटन करते हुए राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक से लेखक श्रीकांत व्यास के व्यापक साहित्यिक अवदान का पता चलता है। इस तरह की पुस्तकें समकालीन साहित्यकारों के अवदानों से समाज को परिचित कराती हैं, जो अत्यंत आवश्यक है।
दूरदर्शन बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर ने कहा कि पुस्तक के संपादक बलराम प्रसाद सिंह साधुवाद के पत्र हैं, जिन्होंने श्रम पूर्वक विभिन्न साहित्यकारों से संस्मरणात्मक आलेख प्राप्त किया। श्री व्यास के पचास वर्ष पूरे होने पर दिया गया एक बड़ा उपहार है।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि व्यास जी एक घुम्मकड़ लेखक हैं। नगर में प्रायः ही पदयात्रा करते दिख जाते हैं। लगातार लिख रहे हैं। इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
श्री व्यास ने कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए पुस्तक के संपादक और उन २१ साहित्यकारों के प्रति आभार प्रकट किया, जिनके आलेख इस पुस्तक में संकलित हुए हैं।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी और वरिष्ठ लेखक बच्चा ठाकुर, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, लोकार्पित पुस्तक के संपादक बलराम प्रसाद सिंह, डा ध्रुव कुमार, बाँके बिहारी साव, चंदा मिश्र आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए और श्री व्यास के दीर्घायुष्य की कामना की।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में डा शंकर प्रसाद ने ‘वह कौन था?’ शीर्षक से, विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘दुर्वह’ , कुमार अनुपम ने ‘चार घंटे’, डा पुष्पा जमुआर ने ‘कट-पेस्ट’, सिद्धेश्वर ने ‘मेरा हाथ मत काटो’, श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘छल’, जय प्रकाश पुजारी ने ‘प्रजातंत्र’,राम गोविन्द यादव ने ‘चुनाव’, डा सुषमा कुमारी ने ‘दौलत’, डा विद्या चौधरी ने ‘संवेदन हीनता’, अशोक कुमार सिंह ने ‘कथा’, नीता सहाय ने ‘प्यार और नफ़रत’, डा पंकज वासिनी ने ‘रूदन’ , लता प्रासर ने ‘पौध’ , वीरेन्द्र भारद्वाज ने “इतिहास” तथा अरविन्द अकेला ने ‘ठेंगा’ शीर्षक से लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन प्रो सुशील कुमार झा ने किया।
सम्मेलन के भावन अभिरक्षक डा नागेश्वर प्रसाद यादव, वीरेन्द्र भारद्वाज, ई अवध बिहारी सिंह, राम किशोर सिंह ‘विरागी’, विजय कुमार दिवाकर, सुजाता मिश्र, सरिता मण्डल, डा कुंदन लोहानी, डा चंद्रशेखर आज़ाद समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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