अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल
हिन्दी भाषा हमारी भारतीय संस्कृति की विरासत ही नहीं बल्कि, राष्ट्रीय एकता की पहचान भी है। हिन्दी भाषा से अपनेपन का एहसास होता है। इस तरह का एहसास कराने का श्रेय हमारे सब के प्रेरणा स्त्रोत डॉ.देवेन्द्र दीपक को भी कम नहीं है | क्या आपको पता है कि यह नारा
“हिंदी में पढ़ेंगे हम- शिखर पर चढ़ेंगे हम” किसने दिया ? यह नारा डॉ.देवेन्द्र दीपक ने गढ़ा जिसने अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय से जुड़े मुझ सहित कितने ही शिक्षकों व विद्यार्थियों में आत्मविश्वास भर दिया | भोपाल में उनसे 5 वर्ष का निकट का संपर्क रहा जिसके कुछ संस्मरण निम्न प्रकार से हैं :-
1.नींव की शिला
डॉ. देवेंद्र दीपक को मैं अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल की नींव का पत्थर नहीं बल्कि शिलान्यास के समय पूजी जाने वाली नींव की शिला मानता हूं | उनसे पूर्व परिचय के कारण ही हम हिंदी विश्वविद्यालय की भविष्य की कल्पना कर पाए | मैंने अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय में कुलपति का दायित्व 30 जून 2012 को ग्रहण किया | उससे पूर्व मेरे पास भारतीय शिक्षण मंडल के अध्यक्ष का दायित्व 2007 से था |शिक्षण मंडल की स्थापना शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुनरुत्थान को पूर्ण करने हेतु की गई थी |भारतीय शिक्षण मंडल का उद्देश्य प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी स्तरों पर भारतीय संस्कृति में निहित तत्वों के साथ भारतीय शिक्षा प्रणाली का विकास करने के लिए शिक्षा नीति, पाठ्यक्रम, शोध ,प्रकाशन सभी स्तरों पर भारत केंद्रित सोच विकसित करना है | भारतीय शिक्षण मंडल में कार्य करते समय मेरा डॉक्टर देवेंद्र जी दीपक से संपर्क उनकी छोटी सी पुस्तिका “मातृभाषा और शिक्षा” जो विद्या भारती का प्रकाशन था, के कारण हुआ | इस पुस्तिका को पढ़कर मैंने भाषा के सम्बन्ध में विश्वविद्यालय की कल्पना करना प्रारंभ किया |
2.अंग्रेजी से द्रोह नहीं -लेकिन उसका मोह नहीं
अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय के शिलान्यास की तिथि 6 जून 2013 निश्चित हो गई थी |भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी को माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया था | मध्य प्रदेश के विभिन्न महाविद्यालय से बड़ी संख्या में छात्रों व शिक्षकों को भी निमंत्रण भेजा गया था |समस्या थी कि भोपाल शहर से 25 किलो मीटर दूर जब विद्यार्थी “सूखी सेवनियां” आयेंगे तो उन्हें क्या संदेश दिया जाए ? मैंने देवेंद्र जी व प्रो. सुरेंद्र भटनागर को सलाह के लिए बुलाया | दोनों ने हिंदी भाषा के संबंध में कुछ आकर्षक नारे व हिंदी वर्णमाला की उत्पत्ति के कुछ मन्त्र व रेखा चित्र प्रदर्शित करने को कहा | मैंने हिन्दी में नारे लिखने का जिम्मा देवेंद्र जी को दिया तथा उन्होंने निम्न दो नारे दिए :-
हिंदी में पढ़ेंगे हम- शिखर पर चढेंगे हम
अंग्रेजी से द्रोह नहीं – लेकिन उसका मोह नहीं
इन दो नारों के साथ अन्य नारों के फ्लैक्स बनाकर विश्वविद्यालय के पूरे प्रांगण में जगह-जगह रख दिए | यह दो नारे इतने लोकप्रिय हुए कि ग्रामीण क्षेत्र से आने वाले छात्र-छात्राओं में इन नारों को पढ़ते समय अजीब सा आत्मविश्वास देखा गया | कार्यक्रम के बाद अधिकांश छात्र ये नारे लगाते हुए नजर आए |
3.और देखते-देखते विश्वविद्यालय पुस्तकालय में लाखों रूपये की हजारों पुस्तकें नि:शुल्क आ गयी
मुझे स्मरण है कि विश्वविद्यालय को प्रारंभ में साल भर का मात्र बजट 1 करोड़ रुपए का स्वीकृत हुआ, जो वेतन भत्तों के लिए भी पर्याप्त नहीं था | विश्वविद्यालय की स्थापना के 6 माह के भीतर ही कुछ प्रमाण पत्र व पत्रोपाधि पाठ्यक्रमों से शिक्षण प्रारंभ हो गया | विश्वविद्यालय पुस्तकालय की स्थापना व उसमें सभी विषयों की हिंदी में पुस्तकें जरूरी हो गयी | विश्वविद्यालय ने डॉ. देवेंद्र जी दीपक को पुस्तकालय समिति में रखा | पुस्तकालय समिति ने देवेंद्र जी दीपक के नेतृत्व में पुस्तकालय विस्तार की योजना दी | आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस योजना के अनुसार हम हिन्दी की चिकित्सा ,अभियांत्रिकी ,प्रबंधन सहित अलग विषयों की केंद्रीय सरकार व राज्य सरकार के हिंदी संस्थानों तथा शिक्षक दानदाताओं से लाखों रुपए की हजारों पुस्तकें नि:शुल्क एकत्र कर ली |
4.अब संत शिरोमणी श्री नामदेव पर आएगा हिंदी में साहित्य
देवोत्थान एकादशी 4 नवंबर 2022 को संत नामदेव जी महाराज की 752 वी जयंती थी |अखिल भारतीय श्री नामदेव छीपा महासभा समिति व अखिल भारतीय नामदेव टांक क्षत्रिय महासभा ने संयुक्त रूप से 4 नवंबर से 10 नवंबर 2022 तक संत नामदेव जयंती समारोह सप्ताह के आयोजन का निश्चिय किया गया | दोनों महासभाओं ने सोचा कि संत नामदेव पर पंजाबी व मराठी में काफी साहित्य है |उत्तरी भारत में संत नामदेव का भक्ति आंदोलन में काफी योगदान होते हुए भी उनका हिन्दी में साहित्य तुलनात्मक दृष्टि से बहुत कम है |हिन्दी में संत नामदेव साहित्य सृजन करने से पहले जरुरी होता है कि उस तरह का पाठ्यक्रम बने |मैंने देश के चार -पांच संत विशेषज्ञों से संत नामदेव का पाठ्यक्रम बनाने का आग्रह किया | मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब 90 वर्षीय युवा सोच शिक्षक डॉ. देवेन्द्र दीपक से 30 अक्टूबर 2022 को आग्रह करता हूँ तथा संत नामदेव की जयंती के दिन 4 नवम्बर 2022 को वह संत नामदेव पर पाठ्यक्रम बनाकर मुझे भेज देते हैं |इस 21 वीं सदी के व्यस्त समय में इतना नि:स्वार्थ समर्पण भाव मुश्किल से ही देखने को मिलता है |अब देवेंद्र जी के संत नामदेव पर पूरा एक प्रश्न पत्र बना देने पर अब साहित्य लेखन आसान हो गया है | जिन शोधार्थियों ने संत नामदेव पर पीएच.डी. की है वे अब हिन्दी में संत नामदेव पर लेखन के लिए तैयार हो गए |
5.डिजिटल तकनीक से अनभिज्ञ व्यक्ति वेबिनार से जुड़ गया
अखिल भारतीय श्री नामदेव छीपा महासभा समिति व अखिल भारतीय नामदेव टांक क्षत्रिय महासभा ने संयुक्त रूप से 10 नवम्बर 2022 को “ संत शिरोमणी श्री नामदेवजी महाराज के विचार -दर्शन की वर्तमान में प्रासंगिकता “विषयक एक अंतरराष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया |हमने डॉ.देवेन्द्र दीपक जी से इस विषय पर ऑन-लाईन मोबाईल से उद्बोधन देने का आग्रह किया |उनका जवाब था “ बेबीनार की तकनीक मुझे नहीं आती ।ऊंचा सुनता हूं ।कोई तकनीकी सहायता करने वाला मिलता नहीं ।“
क्या आप इस 90 वर्षीय व्यक्ति की हिम्मत की सराहना नहीं करोगे जो वेबीनार तकनीक से अनभिज्ञ होते हुए भी 10 नवंबर को दिए गए लिंक से जुड़कर ,किसी से वेबिनार तकनीक सीखकर उद्बोधन दे गए |
6….और सदन रो पड़ा
मुझे स्मरण है कि अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा डॉ. देवेंद्र दीपक को हिंदी पाठ्यक्रम समिति में सदस्य बनाया गया | उन्होंने स्नातक, स्नातकोत्तर हिंदी कक्षाओं के लिए पाठ्यक्रम सामग्री तैयार की | डॉ. दीपक ने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में लिखा ।और जो लिखा, वह पढ़ा गया, और सराहा गया ।उनके लिखे पर आठ शोध कार्य हुए ।डॉ. दीपक ने चार काव्य नाटक लिखे –“दबाव “,”भूगोल राजा का:खगोल राजा का”, “कांवर श्रवण कुमार की” और “सुषेण पर्व ” । ये चारों नाटक थीसिस नाटक हैं । सभी का मंचन हुआ ।
यहां मैं चर्चा काव्य नाटक “कांवर श्रवण कुमार की ” की करना चाहूँगा । इस नाटक का निर्देशन प्रसिद्ध कोरियोग्राफर वैशाली गुप्ता ने किया था।मंचन से अभिभूत दर्शक! मुख्य अतिथि के नाते निदेशक ने मुझे मंच पर बुलाया ।मेरा मन भी अपनी 95 वर्षीय मां की अंतिम तीर्थ यात्रा गंगासागर के संस्मरणों की याद से भरा हुआ था । मैंने बोलना शुरु किया । केन्द्र में मेरी मां थी और श्रवण कुमार की मां थी । मैं भी रोया और सदन भी रोया | यह उनके काव्य नाटक का प्रभाव था |
डॉ.देवेंद्र दीपक के समय समय पर विश्वविद्यालय को नि:स्वार्थ व समर्पित मार्गदर्शन के कारण कुछ ही समय में अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय देश की निगाहों में आने लगा |अब मुझे प्रसन्नता है कि उनके द्वारा हिन्दी में चिकित्सा व अभियांत्रिकी शिक्षा के सम्बन्ध में दिए गए सुझावों के फल अब मध्यप्रदेश को मिलने लगे हैं |भगवान विट्ठल व संत नामदेवजी महाराज उनको शतायु प्रदान करें तथा हम सभी को उनसे प्रेरणा लेने का आशीर्वाद दें |
प्रो.मोहन लाल छीपा
483,एकता ब्लाक ,महावीर नगर,टौंक रोड ,जयपुर