गीता पर प्रवचन देते स्वामी पंडित आनंद सुब्रमण्यम शास्त्री

विजय शंकर

पटना : शीला मैरिज हॉल में 28 दिसंबर से चल रहे हैं संत समागम एवं गीता ज्ञान सत्संग के प्रवचन कार्यक्रम का आज पांचवें व अंतिम दिन गीता पर प्रवचन देने वाले आध्यात्मिक चिंतक गीता मर्मज्ञ पंडित आनंद सुब्रमण्यम शास्त्री ने आज स्पष्ट कहा कि मनुष्य के अंदर भाव गड़बड़ हो गया है और भाव के कारण ही लोगों की श्रद्धा भक्ति चली गई है । लोगों को जरूरत है इसी भाव को बदलने की, जो सत्संग से ही संभव है । सत्संग से ही लोगों के जीवन में भाव बदलेगा । उन्होंने कहा कि लोग जब तक भाव नहीं बदलेंगे तब तक उनमें भक्ति , सच्ची भक्ति नहीं आएगी और भक्ति में नहीं जब तक लोग डूबेंगे नहीं तबतक उनको भगवान का दर्शन, भगवान से मेल और भगवान से भेंट, अनुराग संभव नहीं है ।

पंडित आनंद सुब्रमण्यम शास्त्री ने कहा कि भगवान हर रूप में, हर जगह, हर लोगों के अंदर और हर लोगों के मन में हैं । बस भाव बदलने की जरूरत है, तभी लोगों का जीवन बदलेगा , भक्ति आएगी और उनका जीवन सबरेगा ।

उन्होंने कहा कि आज जरूरत है कि लोग सत्संग में जाएं, सत्संग में समय गुजारे और संतो की बात समझे, तभी भगवान की भक्ति उन्हें मिल पाएगी । उन्होंने कहा कि जो भगवान को याद करते हैं, उनको भगवान मिल जाते हैं और उनका सब चीज ठीक हो जाता है । उन्होंने कहा, गीता में भी भाव की चर्चा है । 

आचार्य पंडित आनंद सुब्रमण्यम शास्त्री ने कहा कि मनुष्य का जीवन और पूरा दिन तीन भागों में बटा होता है और उन्हीं चीजों में गुजरता भी है । पहला कर्म, दूसरा समाज और तीसरा भोग । और इन तीनों कर्मों में लोग दिन-रात  होते हैं और उसी में जीवन गुजर जाता है और भगवान की भक्ति छूट जाती है । अगर हर व्यक्ति यह पूरे दिन और इन तीनों चीजों में भगवान को , भक्ति को सामने रखें तो मनुष्य के अंदर भाव की विकृति खत्म हो जाएगी और भक्ति आ जाएगी और जीवन सफल हो जाएगा । उन्होंने कहा, सबसे पहले लोगों का जीवन कर्म में गुजरता है और कर्म में ही वह पूरा समय गुजार देता है और भगवान को भूल जाता है । फिर कर्म के बाद व्यक्ति समाज के बारे में सोचता है और घर-परिवार समाज के बीच उसका पूरा समय गुजर जाता है और फिर भगवान को भूल जाता है । और फिर तीसरे खंड में व्यक्ति भोग करता है, भोग विलास में ही उसका जीवन गुजर जाता है ,  फिर भी भगवान की भक्ति नहीं पाता है । नतीजा है की भगवान से उसका नाता नहीं जुड़ पाता और नहीं भगवान की भक्ति उसे मिल पाती है । अगर इन तीनों कर्मों में वह भगवान को सामने रखकर, उनको आगे रखकर, उनको साक्षी मानकर, मन में ध्यान कर , अगर कर्म करें , समाज की सेवा करें और भोग करें तो निश्चित रूप से उसे भगवान की भक्ति मिल जाएगी और उसका जीवन असफल से सफल हो जाएगा । 

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