डेढ़ माह से बंधक थे प्रवासी श्रमिक, बेहतर काम के झांसे में गए थे होसपेट
न खाना, न वेतन,.मना करने पर करते थे पिटाई: छुड़ाए गए श्रामिक
हमें तो लगा था…अब लौट नहीं पाएंगे…लेकिन सरकार की मदद से आज वापिस लौटे : श्रामिक
रांची ब्यूरो
रांची : सरकार गठन के साथ ही मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन प्रवासी मजदूरों के प्रति बेहद ही संवेदनशील रहे हैं। कोरोना महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की सकुशल घर वापसी के लिए राज्य सरकार ने अपने सभी संसाधनों को झोंक दिया। जिसका परिणाम रहा कि राज्य सरकार ने न सिर्फ देश के विभिन्न कोनों बल्कि विदेशों से भी मजदूरों की सकुशल घर वापसी करवाई।
बेहतर काम के झांसे में कर्नाटक गए थे श्रमिक, बंधक बनाए गए
सोमवार को मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को गुमला के 5 मजदूरों के कर्नाटक के होज़पेट में फंसे होने की जानकारी मिली। साथ ही, यह भी पता चला कि काम का झांसा दे कर इन मजदूरों को कर्नाटक ले जाया गया और उन्हें वहां बंधक बना कर बंधुआ मजदूरी के लिए मजबूर किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने दिया त्वरित कार्रवाई का निदेश
जानकारी मिलते ही मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन ने श्री सत्यानंद भोक्ता, मंत्री श्रम, नियोजन, प्रशिक्षण एवं कौशल विकास विभाग, झारखण्ड सरकार को इन मजदूरों की सकुशल घर वापसी सुनिश्चित कराने को कहा।
मुख्यमंत्री श्री हेमन्त सोरेन के हस्तक्षेप एवं मंत्री श्री सत्यानंद भोक्ता के निदेश पर माइग्रेंट कंट्रोल रूम ने स्थानीय प्रशासन से संपर्क स्थापित कर इन प्रवासी श्रामिकों की वापसी का कार्य शुरू किया।
सकुशल रांची पहुंचे सभी श्रामिक
शुक्रवार, 07 जनवरी को इन सभी श्रामिकों को कर्नाटक से छुड़ा कर रांची ले आया गया। रांची पहुंचने पर इन सभी श्रामिकों का कोरोना टेस्ट करवा कर गुमला जिला प्रशासन की मदद से उनके पैतृक गांव भेजा गया।
छुड़ाए गए श्रामिकों में गुमला के कोयंजरा गांव के प्रकाश महतो, पालकोट निवासी संजू महतो, मुरकुंडा के सचिन गोप, राहुल गोप एवं मंगरा खड़िया शामिल हैं।
हमें तो लगा था…अब लौट नहीं पाएंगे, लेकिन सरकार की मदद से वापिस लौटे
प्रकाश कहते हैं, “एक परिचित के झांसे में बेहतर काम की उम्मीद से हम कर्नाटक गए थे। लेकिन वहां हमसे 18-18 घंटे काम करवाया जाता था। डेढ़ महीने से वेतन भी नहीं मिला। खाना भी नहीं मिलता था। ऐसे में काम करने से मना करने पर पिटाई भी करते थे…हम सभी को सुरक्षित वापिस लाने के लिए हम सरकार का बहुत बहुत धन्यवाद करते हैं।”
एक अन्य श्रमिक ने कहा, “हमें वहां 10-10 घंटे तक पानी में घुस कर मछली निकालना होता था। फिर निकाली गई अन्य मछलियों को छांटना होता था। इस वजह से ठंढ का भी सामना करना पड़ता था। एक वक्त तो ऐसा आ गया था जब हमें लगने लगा था कि शायद अब कभी घर न लौट पाएं लेकिन हेमन्त सरकार ने हमें बचाया। हम सरकार को बहुत धन्यवाद देते हैं, आभार करता हूं कि आज मैं अपने घर लौट पाया।”